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किशोरावस्था : समझ और मार्गदर्शन (Adolescence: Understanding and Guidance)

किशोरावस्था : समझ और मार्गदर्शन (Adolescence: Understanding and Guidance) प्रस्तावना किशोरावस्था मानव जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील चरण है। यह अवस्था बचपन और वयस्कता के बीच की वह कड़ी है, जहाँ व्यक्ति मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से बदलावों से गुजरता है। इस उम्र में व्यक्ति अपने अस्तित्व और पहचान को लेकर सजग हो जाता है तथा कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करता है। इसलिए किशोरों को समझना, उनकी आवश्यकताओं को जानना और उन्हें सही मार्गदर्शन देना समाज, शिक्षक और अभिभावकों की जिम्मेदारी है। 1. किशोरावस्था की अवधारणा और विशेषताएँ किशोरावस्था सामान्यतः 12 से 18 वर्ष की आयु के बीच होती है। यह वह समय होता है जब शरीर में तीव्र विकास होता है और साथ ही मानसिक परिपक्वता की ओर भी वृद्धि होती है। किशोरावस्था में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं – शारीरिक परिवर्तन – इस समय हार्मोनल बदलाव के कारण शरीर में कई परिवर्तन होते हैं जैसे लड़कों में आवाज़ भारी होना, मूंछ-दाढ़ी आना और लड़कियों में मासिक धर्म की शुरुआत। ये परिवर्तन उन्हें अजीब अनुभव करा सकते हैं। मानसिक पर...

Micro Teaching: शिक्षक निर्माण की प्रयोगशाला

एक अच्छा शिक्षक वो नहीं जो बस पढ़ा दे, बल्कि वो जो बार-बार सीखकर, सुधारकर और संवारकर पढ़ाए। इसी सोच की नींव पर टिका है — Micro Teaching या सूक्ष्म शिक्षण। Micro Teaching क्या है? Micro Teaching यानी "छोटे स्तर पर शिक्षण" — ये कोई सामान्य कक्षा नहीं होती, बल्कि एक अभ्यासशाला होती है, जहाँ शिक्षक बनने की तैयारी करने वाले प्रशिक्षु (Trainee Teachers) 5 से 10 मिनट में, 5 से 10 विद्यार्थियों के सामने, केवल एक शिक्षण कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह प्रक्रिया किसी शिक्षक के व्यक्तित्व को गढ़ने का एक महत्वपूर्ण पड़ाव होती है। Micro Teaching का दृश्य (Imagining the Image) एक छोटी-सी कक्षा है। पाँच विद्यार्थी गोल घेरे में बैठे हैं। सामने एक प्रशिक्षु शिक्षक ब्लैकबोर्ड पर “1857 की क्रांति” शीर्षक लिखता है। उसका हाथ स्थिर है, लिखावट साफ़ — यह Blackboard Writing का कौशल है। Micro Teaching के मुख्य शिक्षण कौशल (Core Teaching Skills) कौशल का नाम उदाहरण या भूमिका Blackboard Writing स्पष्ट, आकर्षक और संतुलित लिखावट Questioning Skill उपयुक्त, सोचने पर विवश करने वाले प्रश्न पूछना Reinforcem...

Kolhan University Pedagogy of Hindi B.Ed 3 semester

VI. सामग्री की शैक्षिक प्रस्तुति का  विश्लेषण शिक्षा केवल जानकारी का संप्रेषण नहीं है, बल्कि यह एक गहन मानवीय प्रक्रिया है, जो संवेदनाओं, सोचने के ढंग, सामाजिक व्यवहार और सांस्कृतिक मूल्यों को आकार देती है। जब हम किसी विषयवस्तु के शैक्षिक उपचार की बात करते हैं, तो हम यह सोचते हैं कि वह पाठ विद्यार्थियों के अनुभवों से कैसे जुड़ता है, उनके भीतर विचार करने की क्षमता कैसे विकसित करता है और उन्हें बेहतर भाषा उपयोग की ओर कैसे ले जाता है। 1. गद्य और पद्य पाठों का चयन (कक्षा 9वीं और 10वीं के लिए) हर पाठ अपने साथ कोई न कोई भावनात्मक अनुभव लेकर आता है। जैसे "एक टोकरी भर मिट्टी" केवल एक घटना नहीं, बल्कि उसमें निहित अपनापन, स्मृति और भावनात्मक संबंधों को प्रकट करता है। "बड़े भाई साहब" में अनुशासन और बालमनोविज्ञान का चित्रण है, जबकि "कोशिश करने वालों की हार नहीं होती" जैसी कविताएँ प्रेरणा और आशा का संचार करती हैं। शिक्षण में इन पाठों को भावात्मक, सांस्कृतिक और भाषाई दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 2. शब्द-भेद (Parts of Speech) संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण जैस...

Professional Development Of Hindi Teachers

1. हिंदी शिक्षकों के लिए इन-सर्विस प्रशिक्षण कार्यक्रम हिंदी शिक्षक का पेशा केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं होता, बल्कि वह निरंतर सीखते रहने की प्रक्रिया का भी हिस्सा होता है। सेवा में रहते हुए शिक्षकों को दक्ष बनाए रखने के लिए कई प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कार्यक्रम हैं: परिचय कार्यक्रम: ये कार्यक्रम शिक्षकों को नई शैक्षिक नीतियों और पाठ्यचर्या में हुए बदलावों की जानकारी देने के लिए होते हैं, जिससे वे अपने शिक्षण में इन बदलावों को शामिल कर सकें। पुनश्चर्या पाठ्यक्रम:अनुभवी शिक्षकों के ज्ञान को अद्यतन करने के उद्देश्य से ऐसे कोर्स कराए जाते हैं, जिनमें साहित्यिक, भाषिक और मूल्यांकन से जुड़ी नवीन जानकारियाँ दी जाती हैं। विषय आधारित कार्यशालाएँ:विशेष विषयों पर केंद्रित कार्यशालाएँ शिक्षकों को गहराई से उस विषय को समझने और रचनात्मक तरीकों से सिखाने की दिशा में तैयार करती हैं, जैसे रचनात्मक लेखन, बाल साहित्य आदि। डिजिटल प्रशिक्षण:तकनीकी साक्षरता को बढ़ाने के लिए ई-लर्निंग, स्मार्ट कक्षा और भाषाई सॉफ्टवेयर जैसे विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। 2....

हिंदी भाषा में तनाव (Stress) और स्वर-लहरियों (Intonation) के पैटर्न

 🔶 1. तनाव (Stress) क्या है? तनाव (Stress)से तात्पर्य है – जब हम बोलते समय किसी शब्द के किसी विशेष अक्षर या शब्दांश (syllable) पर अधिक ज़ोर देते हैं। हिंदी में तनाव का प्रभाव अंग्रेज़ी जितना महत्वपूर्ण नहीं होता, लेकिन फिर भी कुछ शब्दों या वाक्यों में अर्थ स्पष्ट करने के लिए हल्का तनाव उपयोगी होता है। 🔸 उदाहरण: 1. राम ने सीता को फूल दिया। यहाँ "राम" पर हल्का तनाव देने से स्पष्ट होता है कि काम करने वाला व्यक्ति राम है।    लेकिन अगर हम कहते हैं: राम ने सीता को फूल दिया। तो "फूल" पर तनाव देकर हम यह दर्शाते हैं कि राम ने उपहार के रूप में फूल दिया, न कि कुछ और। 🔶 2. स्वर-लहरियाँ (Intonation) क्या हैं? स्वर-लहरियाँ (Intonation) का अर्थ है – वाक्य बोलते समय हमारी आवाज़ का ऊपर-नीचे जाना। यह हमारे भाव (भावनाएँ, प्रश्न, आदेश, विस्मय आदि) व्यक्त करने में मदद करता है। 🔸 स्वर-लहरियों के प्रकार: (क) उतरोत्तर स्वर (Rising Intonation) जब वाक्य के अंत में आवाज़ ऊपर जाती है। आमतौर पर प्रश्नवाचक वाक्यों में। 👉 उदाहरण: तुम आज स्कूल जाओगे? (यहाँ "जाओगे" बोलते समय आवाज़ थो...

Hindi pedagogy 3 semester( हिंदी भाषा में ध्वनियों का उच्चारण और वाक्-इंद्रियों का उपयुक्त उपयोग)

हिंदी भाषा में ध्वनियों का उच्चारण और वाक्-इंद्रियों का उपयुक्त उपयोग 1. ध्वनि क्या है? जब हम बोलते हैं, तो हमारे फेफड़ों से निकली हुई हवा, मुंह और गले के अंगों से टकराकर एक विशेष ध्वनि उत्पन्न करती है। यही ध्वनि भाषा का मूल आधार होती है। हिंदी भाषा ध्वनि प्रधान भाषा है, जिसमें प्रत्येक अक्षर एक निश्चित ध्वनि को दर्शाता है। 2. मुख्य वाक्-इंद्रियाँ (Organs of Speech) हमारे शरीर में कुछ अंग ऐसे होते हैं जो ध्वनि उत्पन्न करने और उसे स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सहायता करते हैं। इन्हें वाक्-अंग या वाक्-इंद्रियाँ कहा जाता है। ये अंग निम्नलिखित हैं: | वाक्-अंग (Speech Organs) | कार्य (Function) | फेफड़े (Lungs)| उच्चारण के लिए आवश्यक वायु प्रदान करते हैं स्वरयंत्र (Larynx / Voice box)| स्वर ध्वनि का निर्माण करता है | तालु (Palate)| ध्वनि की गुणवत्ता को नियंत्रित करता है | दांत (Teeth)| कुछ व्यंजनों के उच्चारण में सहायक | जीभ (Tongue)| ध्वनियों के निर्माण में सबसे सक्रिय अंग ओंठ (Lips)| प, फ, ब, म जैसे व्यंजनों के ...

B.Ed 3 semester Pedagogy of Hindi Sounds of Hindi language : Consonants and Vowels (Pure and Diphthongs)

 हिंदी भाषा के ध्वनियाँ: व्यंजन और स्वर (शुद्ध स्वर और संयुक्त स्वर / द्वित्व स्वर) परिचय: ध्वनि और भाषा भाषा का मूल आधार ध्वनि (Sound) है। यह वह माध्यम है जिसके द्वारा विचारों और भावनाओं को व्यक्त किया जाता है। हिंदी भाषा एक ध्वन्यात्मक भाषा है अर्थात जैसा लिखा जाता है, वैसा ही बोला जाता है। हिंदी के ध्वनियों को दो मुख्य वर्गों में बाँटा जाता है: 1. स्वर (Vowels) 2. व्यंजन (Consonants) 1. स्वर (Vowels) स्वर वे ध्वनियाँ होती हैं जिनके उच्चारण में हवा का प्रवाह मुँह के भीतर बिना किसी रुकावट के बाहर निकलता है। स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जा सकते हैं। हिंदी में कुल **11 शुद्ध स्वर** और **4 संयुक्त स्वर (द्वित्व स्वर)** होते हैं। (क) शुद्ध स्वर (Pure Vowels): | स्वर | उच्चारण उदाहरण | मानवीय उदाहरण | | ---- | ---------------- | -------------------------------------------------- | | अ | **अग्नि**, अनाज | जैसे नवजात शिशु की पहली ध्वनि 'अ' | | आ | **आकाश**, आग | प्रसन्नता की ध्वनि: “आह, कितना सुंदर है!” | | इ ...